इस पर यकीन करना कठिन है की दुर्दांत विकास दुबे सचमुच की मुठभेड़ में मारा गया ,लेकिन पुलिस के दावे पर हैरानी प्रकट करना भी इस सच्चाई से मुँह मोड़ना है की अपने देश में ज्यादातर मुठभेड़ संदिग्ध किस्म की ही होती है। कुछ महीने पहले जब हैदराबाद में हत्या और सामूहिक दुष्कर्म के आरोपियों को मर गिराया गया था तो उसी तरह हंगामा मचा था जैसा 8 पुलिसकर्मियो के हत्यारे विकास दुबे को कथित मुठभेड़ में मारे जाने के बाद मचा है। तब सुप्रीम कोर्ट के मुख्या न्यायाधीश ने कहा था की न्याय बदला लेने में तब्दील नहीं होना चाहिए ,लेकिन क्या खोंखार अपराधियों को उनके किए की सजा देने के लिए ठोस कदम उठे ?ऐसी सूचना नहीं है। हकीकत तो ये है की अगर हैदराबाद की मुठभेड़ ना होती तो शायद देश को दहला देने वाला निर्भया कांड के अपराधी अब भी फ़ासी की सजा का इंतज़ार कर रहे होते। आखिर इस सच को स्वीकार करने से कब तक बचा जाता रहेगा की अपने यहाँ अपराधियों को सजा सुनाने में अंधेर की हद्द तक देर ही नहीं होती ,बल्कि सजा पर अमल में अनावश्यक विलम्भ होता है ? इसी तरह पता नहीं क्यों इस सच की भी खूब अनदेखी हो रही है कि हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली इतनी नाकारा है की ज्यादातर अपराधी छूट जाते है।
यदि अपराधी माफिया किस्म का है तो उसे सजा मिलने की संभावना काम ही है की होती जाती है। इसी तरह अगर कोई माफिया राजनीती में सक्रिय हो जाए ,जैसा की आज चलन है तो फिर उसके जेल जाने की बजाए पंचायत ,विधानसभा और संसद पहुंचने के आसार बढ़ जाते है। क्या हम इस शर्मनाक सच से अनजान है विधानमंडलों में आपराधिक पृष्ठभूमि वालों की संख्या बढ़ जा रही है ? हैरानी नहीं है की इसी कारण राजनीती के आपराधिककरण को खाद -पानी देने के साथ ही विकास दुबे सरीखे माफिया तैयार कर रही है। न्याय और नीति का तकाजा यही कहता है की अपराधी चाहे छोटा हो या बड़ा उसके मांमले में विधिसम्मत प्रक्रिया का प्रस्ताव का प्रभावी ढंग से पालन होना चहिये ,लेकिन
दुर्भाग्य से यह केवल किताबी ज्ञान बन कर रह गया है। सभ्य समाज संदिग्ध किस्म की मुठभेड़ों की इज़ाज़त नहीं देगा,लेकिन वोह इसकी भी इज़ाज़त नहीं देगा की कोई डूबैठने में घुसकर हत्या कर डोर फिर छूटता घूमे….!!!
करनी के अनुसार अन्ततः न्याय ,
रावण जैसे थे तपे आखिर गए बुझाए।
आखिर गए बुझाए साथ सब संगी -साथी ,
रोएं बैठ कुटुंब बुझ गयी जिसकी बाती।
बचे न इससे कोए सभी को पड़ती भरनी ,
करता है इंसान जिस तरह की भी करनी।